Wednesday, September 17, 2014

PTM: PARENT TEACHER MEET

An unposted letter for the parents and teachers of this platonic world:
इस सतही जगत के पालकों और शिक्षकों के नाम एक अडाकित पत्र :




जिस तरह ज्ञान का सबसे बड़ा शत्रु अज्ञान नहीं, ज्ञान का मिथ्याभास होता है ठीक उसी तरह शिक्षा या शिक्षक का सबसे बड़ा शत्रु अशिक्षा या अशिक्षित नहीं, शिक्षित होने का मिथ्याभास होता है। 

विद्यार्थी वो नहीं जो विद्या का अर्थ समझना चाहता है, विद्यार्थी तो वो होता है जो विद्या की अर्थी निकाल सरेआम खुश होता है। आजकल के विद्यार्थी तो माँ के पेट से ही विद्यावान बनकर निकलते हैं। थोड़ा बहुत बचपना होता भी है अगर तो बस पांचवी तक ही बचता है। छठी का दूध अपने शिक्षकों और अपने निर्गुण संपन्न पालकों को बिलकुल निसंकोच भाव से पिला देते हैं ये मक्कार इंटरनेशनल अकादमी के चाणक्य तूल चतुर, बहुमुखी , प्रतिभाशाली एवं सर्वगुण संपन्न विद्यार्थी गण। दोमुहे समाज से बहुत जल्द मक्कारी सीख-सीख कर ही तो ये इतने मक्कार हुए हैं की अब तो इन्हे पुराने जगत के विद्यार्थी के बजाय नए जगत का पार्थसारथी कहना ज्यादा समसामयिक होगा। 

नहीं?

विश्वास न हो तो आजकल के टीवी विज्ञापन जरा गौर से देखिएगा। आप तुरंत समझ जाएंगे की कंपनियों की मिलीभगत से ये लोग किस तरह अपने ही माँ-बाप की खिल्ली उड़ाते हैं। कोई बेहया अपनी ही ग्रामीण माँ की नक़ल उतारते नज़र आएगी आपको तो कोई खाऊ निठल्ला अपने ही बाप द्वारा सालों की मेहनत से कमाए गए रूपये उड़ाते नज़र आएगा आपको। 

ये सब समुचित ज्ञान की बातें बेहिचक और बिना किसी शर्म के खुलेआम हो रही है। कंपनियों ने तो इनकी व्यव्हार कुशल सोच का जायज/नाजायज फायदा उठाकर अपने धंधे के वारे-न्यारे करना जाने कब से शुरू कर दिया है। हम-आप ही हैं जो अब तक गीता-रामायण की मिथक रजाईयां ओढ़ सो रहे हैं।हालात ये हैं की अब तो इसी सोच का फायदा उठाकर आप-हम को पल्ले दर्जे का मुर्ख या बेवकूफ साबित करने की होड़ सी लगी है इन लावारिस कंपनियों, इनके अनाथ मालिकों और जी हाँ - आप-हम के तथाकथित बच्चों के बीच।

क्या अब भी आप ये छाती ठोक के कह सकेंगे की  "जाने भी दीजिये साहब, बच्चे है।" 
बच्चे हैं पर कच्चे नहीं हैं ये साहबज़ादे एवं साहबज़ादियाँ, हुजूर। और इस सब के पीछे ऑफ कोर्स - तेरा तेरा तेरा कसूर। :-)

Man is bad case....isn't it?

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