Sunday, June 1, 2014

लब्बो-लुबाब ; मेरे टूटने की वजह - RUBBISH FEELINGS; BROKEN HEART



{मेरे टूटने की वजह मेरे जोहरी से पूछिये,
बस, ये उस की खाहिश थी की मुझे थोड़ा और तराशा जाए।} 

तोड़ डालो मुझे,
तराश डालो मुझे,
मार डालो - काट डालो मुझे,
जो दिल चाहे करो तुम मेरे साथ
पर 
ख़ुदा के लिए बक्श दो मेरी मेरी नन्ही सी मासूम परी जान को 
की निगाहों में उसकी बसता है मेरा रसूल-ए-यार। 
बनता भी 'वही' है बिगड़ता भी वही है
बनती - बिगड़ती को सँवारता भी वही है 
फिर एक दिन सबकुछ भुलवा भी ' वो'
नाकुछ को सबकुछ और सबकुछ को नाकुछ भी बनाता वाही है। 

क्यूँकर रोका जाए 'उसे' जो हमारा था ही नहीं कभी,
क्यूँकर....हाँ...क्यूँकर?
जो हुआ वो इश्क़ाँ तो लौटेगा ही घर वो परिंदा कभी ना कभी। 

अपने-परायों की मज़बूरी से दिलवालों का होता कोई वास्ता नहीं,
फुर्सत में दिल बहलाने को की गयी लफ़्फाज़ियाँ कतई उनका रास्ता नहीं,
इश्क़ में मोज़ू होती है ज़माने की हर ख़ुशी,
दुआ देने वालों को अकेलापन कभी काटता नहीं। 

ना वक़्त, ना दिल, ना प्यार, और ना ही दोस्त कुछ कहते हैं यहाँ,
वे तो चुपचाप बस देखा करते हैं ज़िंद नित नए तमाशे,
बकवास करने का ज़िम्मा तो बस तेरे 'दीवाने वारसी - मनीष' ने ले रक्खा है 
और वो भी किसी नादान बहरूपिये की तरह :-)

कब तक झुकाओगे ये पलकें,
कब तक भिगाओगे ये आँखें,
छिपन-छिपाई का ये खेल मेरे संग खेलोगे कब तलक,
जानते हो जब तुम ये भली-भाँती की 'इश्क़ और मुश्क़ छिपाए नहीं छिपते' ;-)


तुम खुश तो हम खुश 
वर्ना तो...,
हर ख़ुशी के साथ चले आते है ग़म बिन बुलाये मेहमानों की तरह 

सिवाए इश्क़ के कौन लिख सका है किस्मत एक दीवाने की,
दुआ मांगते हैं वो जिन्हे आरज़ुएँ है ज़माने की,
मुक़द्दर का सिकंदर होता है हर आशिक़ यहाँ,
वो शम्मा क्या बूझे जो लौ है किसी परवाने की ;-)

वफ़ाएँ हमारी इश्क़ से है, नफरतों से नहीं,
मोहब्बतें हमारी तुमसे नहीं तो किसी से नहीं,
तुम जो रो दो तो रो देता है जग यहाँ सारा,
(अब ये बात और की लोग उसे बारिश समझते हैं यहाँ)
मंशाएँ हमारी फ़क़त तुमसे हैं हर किसी से नहीं।

जी तो लेते है हम 'तेरे बिन' पल-पल, हर पल,
पर; 
यूँ मर-मर के जीना भी कोई जीना है लल्लू !

आएं!!

काफी ही होता अगर हमें ये दो-चार पल का इश्क़, 
ये दो-चार पल की ज़िंदगानी, 
ये दो-चार बूँदें पानी की 
तो 
दरियादिल कहलाते हम..,
घड़ियाली आँसू बहाने वाले घड़ियाल या दो-मुहें साँप नहीं। 

 अपने रूठ ना जाएँ इसलिए चुप रहते हैं हम,
उफ़्फ़ !! 
ये खुशियों की बसंत पंचमी,
ये ग़मों के पतझड़,
ये जुदाई की आग.....
आँधियाँ कहीं बिखेर ना दें 
ये तुम्हारा गुलिस्ताँ इसलिए पराये बने रहते हैं हम !!
   

 
दिल लगाकर दिल से कई सारे पैगाम भेजा किये हम उन्हें...,
ख़ामोशी मिली जब जवाब में तो हम भी चुप रहना सीखा किये..!!

लब्बो-लुबाब मगर ये जाने क्यों ख़त्म नहीं होते,
आशाओं के ये दीप जाने क्यों जलते रहते है दिन-रात.… ??  

Man is bad case....isn't it?

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