Sunday, August 11, 2013

सुबह-ओ-शाम

Humaima Malick


सुबह-सुबह तेरा नाम लेते हैं हम,
दोपहर हो जाती है तेरे ही सदके में सनम,
शाम छा जाती है मदहोशी तेरे तसव्वुर की,
रात को सजदे में सरेआम होते हैं करम


ना जीते हैं और ना ही मरते हैं हम 
जाने क्यूँ फिर भी मगर 
तेरे ज़िक्र पे ये क़त्ल-ए-आम होते हैं हर जनम 



आठ पहर चौसठ घड़ी 
बजती रहती है दिल में शहनाई तेरे सिमरण की 
जाने क्यूँ फिर भी मगर 
ये घंटे घड़ियाल से लगते हैं सनम 



तुम ही सीखा दो अब हमें 
ये साँसें लेने-छोड़ने के सितम 
ओ मेरे यारा !!
ओ मेरे दिलबर !!
ओ मेरे सितमगर !!
वर्ना तो ज़िन्दगी में किस्से तमाम होते हैं हर दम 



बोलिये… सीखाएँगे आप मुझे 
यूँ पल-पल जीना 
और 
यूँ ही पल-पल मरना ??
या 
फिर से एक बार छोड़ देंगे आप मुझे 
सुबह-ओ-शाम तरसने और तड़पने के लिए सनम ??

Mahira Khan

बोलिए ना…  


Man is bad case....isnt it?

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