Wednesday, May 29, 2013

मोहब्बत-ए-अमरोज़



माँ अमृत साधना जी ने एक साक्षात्कार के दौरान अमृता प्रीतम जी से से पुछा : 

'आपकी ओशो से जो मोहब्बत है उसे क्या नाम देंगी?'

अमृता जी जवाब दित्ता :

'देखो जी, मोहब्बत को कोई नाम नहीं दिया जा सकता। मैं इमरोज़ से मिली थी तो एक लाइन लिखी थी...यह मेरे आत्मा के घर-ओ-दीवार विच जगह-जगह, हर जगह आपको लिखी दिखाई देगी।'



बाप, बीर, दोस्त ते भांवज
किसी लब्जदा कोई नहीं रिश्ता 
उंज जदों में तैनू तकियां
सारे अक्खड़ बूढ़े हो गए 

('बाप, भाई, भांवज, दोस्त, किसी से कोई रिश्ता है। जब तुम्हे देखा तो सारे अक्षर गैर हो गये। तो जो अक्षरों को गैरा कर सकता है, जो रिश्ता लब्ज को गैरा कर सकता है ...उस मोहब्बत के रिश्ते को क्या नाम दें?')



(Excerpt credentials: Taken with heartfelt gratitude from page 34 of February, 2013 issue of YES OSHO magazine)  

Man is bad case....isn't it?

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