Monday, April 15, 2013

गुप्त नवरात्रि के पावन पर्व पर...secret message for sick lovers !!


इंसान इस दुनियाँ में नग्न आता है और नग्न जाता है
परन्तु इस बीच कपड़ो वाली दुनियाँ में
कितनी ही बार हमारा समाज
स्त्रीयों की आत्मा को किसी ना किसी बहाने
जाने कितनी ही बार नग्न करता है
जिसे ढाकने के लिये कफ़न भी झीना पड़ जाता है

-अनामिका ''अनु'' (my facebook friend)


My apologetic response:

गुप्त नवरात्रि के पावन पर्व पर
बीमार आशिक़ों के लिए  

विस्मित या आश्चर्यचकित करने वाली बात मगर ये 
की 
स्त्रियों की आत्मा को 
तमाम अशलीलता के, 
तमाम नग्न करने के अथक-अभद्र   
हिंसक-अहिंसक प्रयास दर रोज़ करने के बावजूद भी 
मुआ ये दोमुँहा समाज
आज तक किसी स्त्री की आत्मा को छू तक नहीं पाया 
दरअसल तो कभी नहीं !!
हाँ !!
 आहत जरुर किया है उसने स्त्री के दिल को, जिगर को
हाँ !!
आघात जरुर पहुंचाई है उसने स्त्री के ममतामयी प्रेम को 
हाँ !!
चोट जरुर पहुंचाई है उसने स्त्री के तन-मन-धन को 
मज़ा मगर ये 
की अब भी पूर्णतः दीवाना है ये समाज इसी स्त्री के रूप का यौवन का
त्रास मगर ये की आती नहीं इस समाज को इश्क की अदा
भूल गया है ये रस्म-ए-उल्फत भी और हक़-ए-आशिक़ी भी
गुलामी करना नहीं चाहता ये इश्क की 
इसलिए बनना चाह रहा है ये मालिक स्त्रीयों का सदियों से
अफ़सोस मगर ये 
की 
असल में लेकिन बन गया है ये एक दरिंदा 
पर फिर... 

ये भी उतना ही बड़ा सच है 
की 
रूह अब भी रोशन है स्त्रीत्व की 
दिल में सुलगती है आग अब भी उसमे इश्क की 
आसमान छूना चाहती है वो अब भी परिंदों की तरह 
हैं पूरी तरह जिंदा उस आनंदमयी जन्मदायी में
रूहानी हसरतें, जिस्मानी ख्वाब और मनचाही ख्वाहिशें अब भी 
इबादत कर, इबादत कर, इबादत कर 
की 
इबादत से वक़्त भी बदल जाता है और किस्मत भी 
फर्क सिर्फ इतना 
की 
किसी का वक़्त आज बदलता है 
तो किसी की किस्मत कल चमकती है 
मन ले उसे तू नाच-नाच कर 
करके थैय्याँ-थैय्याँ 
की 
तेरी ये अदा उसे आती है बहुत रास 
देखना फिर माँ कसम !!
शामें ना कर पाएँगी कभी तुझे उदास
हर सुबह ले आएगी तमन्नाओं में एक नई आस
रख विश्वास, रख विश्वास, रख विश्वास
या खुदा करम कर, रहम कर इस मासूम नन्ही सी परी पे
बक्श दे इसे तू वो रोशनाई, वो खुशबु, वो महक,
बना दे इसे तू वो सितारा, वो धड़कन, वो नाम
दे दे इस शक्तिस्वरुपिनी को वो सब नेमतें 
जो बांटना चाहती है ये हम सामाजिक निष्ठुर प्राणियों को सरेआम 
महज जगत कल्याण हेतु
हाँ !!
और कुछ नहीं फकत जगत कल्याण हेतु
वरना पता नहीं कब
महज दुष्ट आत्माओं के संहार हेतु, विनाश हेतु  
इस स्त्रैन शक्ति की श्रद्धा-सबुरी और धैर्य का बाँध टूट पड़े साईं 
ना जाने कब 
माँ कालिका, माँ दुर्गा का रूप ले ले ये तारा माई
जागो राम जागो !! 
            
 

Man is bad case....isn't it?
http://youtu.be/MBb_OrHGB38

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