Monday, October 8, 2012

पर्दा

 
 
"मेरे पीर, मेरे रहबर, मेरे मुर्शिद 
पंडित बेदार शाह वारसी
6 अक्टूबर 2012 को रात 11.57 बजे 
इस दुनिया से पर्दा कर गए 
इस जिस्मानी इन्तेकाल को ही सबकुछ समझ बैठे 
ये जाहिल और ये काहिल दैनिक भास्करी 
ठीक भी है के ये नादान, ये चर्मकार  
क्या ख़ाक जान सकेंगे  
रूहानी शक्तियों की अजल से चली आ रही अदाकारी ..."
दैनिक भास्कर नहीं 
ताड़कासुर हो तुम,
सफलता के अहंकार से पल-पल सड़ रहे हो तुम,
नेतागिरी का जलवा इतना व्याप्त हो चूका है तुम में,
की एक वारसी आत्मा के पूर्व पार्षद पद से ही चिपक कर रह गए हो तुम 
रणकेश्वर धाम मंदिर तो जैसे तुम्हे दिखाई ही नहीं पड़ता 
इस कदर लिंगत्व में डूब चुके हो तुम 
पप्पू के खुदा या विध्यार्थी का यार तो बहुत दूर 
इतने गैलिए हो चुके हो तुम
की 
वर्षो की तपस्या को एक रात में ही 
समाधी स्थल रचने की अधकचरी कहानी गढ देते हो तुम 
धिक्कार है तुम्हारे पत्रकारों और तुम्हारी मानसिक रूप से विकलांग पत्रकारिता पर 
ब्लैक मैलर्स के कुटिल खानदान बन गए हो तुम 
कहता है ये 
पंडित बेदार शाह वारसी का एक अदना सा मुरीद 
के हम वारसियों के रूहानी जलाल से बच के ही रहना तुम
या वारिस अल्लाह वारिस हक वारिस 
रहम वारिस करम वारिस दाता वारिस 
आमीन आमीन आमीन 
सुमामिन  
   

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