Sunday, September 23, 2012

"साब" याने की "साहब"




देख रहें हैं ना आप जनाब
दैनिक भास्करी ये अजाब !!
की भले ही रह चुकें हो आप 
कितने ही बड़े अटल बिहारी, George Fernandes या दिलीप कुमार "साब"
देर-सबेर ही सही 
पर एक दिन तो जरुर 
ढल ही जाता है 
आपके रुतबे का ये आफताब !! 
बटोर लें ताउम्र हम 
भले ही कितने बड़े-छोटे सामाजिक खिताब
एक दिन तो मगर दिल खोल कर पढना ही है 
खुदी, खुदाई और खुदा के रसूल की ये रूहानी किताब
तो फिर आज और अभी ही क्यूँ ना 
उतार लें ये धुल भरी जिल्द, ये नकाब ..??
और ये भी बाखूबी ये जान लें मेरे सरकार 
की 
ज़िक्र ये रोशनी के नूर का
इस गुलाम-ए-वारसी का हो सकता ही नहीं
ये तो है बस सल्ल्लाल्लाहू अलिहे वसल्लम का रकाब

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