Thursday, September 6, 2012

ज़िन्दगी

ज़िन्दगी जीने का अनदाज़ ये बेमिसाल है,
खतरों से खेलने का शौक ये बाकमाल है,
मौत हो जब माशूका तो कातिल होता बेहाल है
ठोकर खा कर भी जब ना संभले मुसाफिर
तो बना लेता है वो खुद को बदनसीब
राह के हों पत्थर या हो पत्थर के खुदा
वे तो कुदरतन अपना फ़र्ज़ अदा करते ही हैं
पंडित जी...
जो इस पल ना जी पाया
वो पल पल क्या ख़ाक जी पायेगा..!!
जो खुद का साथ ना दे पाया
वो दूसरों का साथ क्या ख़ाक निभा पायेगा..!!
फिर ये भी की...
किसी के साथ की दिन-रात जरुरत हो जिसे
वो शिव को अपने भीतर क्या ख़ाक महकता पायेगा..!!
जनता जब खुद जिम्मेदारी निभाए 
अनदेखी, भ्रष्ट आचार और मनमानी कर के 
सुबह शाम दैनिक भास्कर की तरह बड़ा और सफल होने के लिए
 तो क्या हक उसे की किसी और को जिम्मेदार ठहरा ईमान के सवाल उठाये..??
बादल जो गरजते हैं बरसते नहीं 
और जो बरसते हैं वो गरजने का ढोंग नहीं करते 
बल्कि सबसे पहले खुद को प्रेम रुपी बिजली से भस्म कर 
बनते हैं धरती माँ के सपूत...
हो जाते हैं वो निर्मल सुभाए
 बजाये बनने के धुल चाटने वाले निर्मल दरबार की तरह बेईमान...
बंद करो ये दैनिक भास्कारी नोटंकी, 
ये बकवास, ये चिकनी-चुपड़ी बातें, ये मुर्ख बनाने वाले सुविचार, 
ये सनसनी पैदा करने वाले समाचार, ये कहा-सुनी,
हो जाओ पहले खुद प्रभु के दास 
फिर उपयोग करना कबीर के नाम का - "कहत कबीर लजाये"
ये देख 
उज्जैनी मनीष बड़कस दीवाने गुलाम वारसी को बहुत ही लाज आए
या मालिक...!! 
बक्श दो इन सफलता के पुजारियों को दो-चार अल्लाह की गाय...
ॐ नमः शिवाय
ॐ नमः शिवाय
ॐ नमः शिवाय 

No comments:

Post a Comment

Please Feel Free To Comment....please do....