Sunday, January 1, 2012

ये साल अच्छा है...

देखिये पाते हैं कुशाक बुतों [man made gods] से क्या 'कैफ'
एक ब्राह्मण ने कहा है के ये साल अच्छा है...



सब कुछ वही होकर भी
नया-नया सा लगता है,
इश्क हुआ जबसे
हर पल नया-नया सा लगता है..

जाने कहाँ गयी
वो कल की कल-कल,
अक्स ये मेरा
नया-नया सा लगता है..

वही सूरत है
और सीरत भी वही,
शख्स ये मगर
नया-नया सा लगता है..

ना मंजिलें बदली
ना राही और ना ही रास्ता,
नक्श फिर भी
नया-नया सा लगता है..

तुम मैं हूँ
और मैं तुम,
रक्स ये हमारा
नया-नया सा लगता है..

बदले-बदले से
नज़र आते हैं 'मनीष',
नुक्स ये उनका
नया-नया सा लगता है..

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