Monday, December 31, 2012

इन हसीनाओं को...और...लापता हो चुके दीवानों को...

इन हसीनाओं को...
और
लापता हो चुके दीवानों को...


बला का हुस्न बक्शा है कुदरत ने
इन हसीनाओं को
शबाब ही नहीं शराब से भी नवाजा गया है
इन हसीनाओं को
'उसने' तो 
दिल ही दिल बनाया था इन्हें
जाने कौन मनहूस घड़ी लग गया अक्ल का चस्का
इन हसीनाओं को...


जानता हूँ 
बाबा आदम के ज़माने में
चखा थे इल्म का एक सेब हव्वा ने
जरुरी नहीं मगर 
इस बोझ को सर पे उठाये रखना
हाय मगर !
 कौन ये राज खोलने की हिमाकत कर सकता है 'आज'
इन हसीनाओं को...


गेसुओं का बाँकपन
मिला था दिल धड़काने को
उलझाना इनमें जाने किसने सिखाया है 
इन हसीनाओं को...


ललाट था जो लाली से भरा-भरा कभी
आज उतर आया है खून इसमें
माथा ठनकते ही देखो तो
दे गया कैसी नामुराद सलवटें
इन हसीनाओं को...


मटकती ये आँखें, मदभरे ये नैन
आज भी ठहरा देती है साँसों को
उठाती हैं जो अब यें तीर-ओ-तलवार
क्या चंचल चितवन काफ़ी नहीं थी 
इन हसीनाओं को...?


सूंघ ले जो बदनियतों को दूर से ही
कुछ ऐसे बक्शे गए हैं नाक-नक्श इन्हें 
इतना नाकवाला 
फिर किसने है बनाया
इन हसीनाओं को...?


लब जैसे गुलाब की हैं पंखुड़ियाँ
मोतियों से तीसपे दन्त 
और  
काँटो सी तीखी जुबां भी
 है इन्हें मुहैय्या
कातिलाना तो खैर थी हीं
पर कातिल किसने बनाया
इन हसीनाओं को...?


सुराहीदार ये गर्दन
थी कभी गाफ़िल कंठ की प्यास बुझाने में
अकड़ी कुछ इस तरह मगरुरी में
के बुत बना रख छोड़ा है 'आज' इन्होने 
इन हसीनाओं को...


नाजुक ये कंधे
कभी बने ही नहीं थे
दुनिया का बोझ उठाने को
जाने किसने दे दिया मगर
ये तख़्त-ओ-ताज का जूनून
इन हसीनाओं को...


ये गुदाज बदन, ये मरमरी बाहें
और ये तराशा हुआ जिस्म
सबकुछ तो था नसीब
मलिका-ए-जहाँ बनने के लिए
दिल ही मगर बैठा जाता है अब आशिकों का 
देखकर इन गुस्सैल हसीनाओं को...


सिसकती है जो आज छुप-छुपकर
अपनी ही महत्वाकांक्षाओं की आग में
नेहाओं की इस नेहा से अब कौन बचाएगा
इन हसीनाओं को...


जाने कब गले उतरेगा 
इन हसीनाओं के दिल में
ये अदना सा सच
के यूँ पौरुषीय हो जाना 
बिलकुल भी शोभा नहीं देता
इन हसीनाओं को...


और ना ही कोई मर्दानगी छिपी है मर्दों की 
किसी नारी का रूप-श्रृंगार धरने में 
धिक्कार करने में
बलात्कार करने में 
या 
ये सच स्वीकार करने में 
की 
नर भी ठीक उसी तरह अधुरा है नारी बिना 
जिस तरह नारी अपूर्ण है नर बिना 
जरुरत है तो बस., 
आत्मीय मिलन की 
प्राकुर्तिक संतुलन की 
आनंदमयी जीवन जीने के लिए ...
 

अश्लेशा तेरा अवशेषों की
मेघा तेरे मेघों की
और
रोहिणी तेरे ग्रहण की
कसम है हमें
करेंगे ना सिर्फ इल्तज़ा ज़िन्दगी से
बल्कि करम भी कुछ ऐसे इस ज़िन्दगी में
की
नाज़-ओ-अदा से जीना सीखा दे
फिर से हमें कोई कृष्ण  
वो मीरा वाला पाक-साफ़ इश्क 
वो राधा प्यारी का प्रेमपूर्ण रक्स  
इन हसीनाओं को...
वो कृष्ण वाली मासूमियत से भरी रास-लीला
हम दीवानों को...

फिर रोशन कर ज़हर दा  प्याला
चमका नई सलीबें
झूठों की दुनिया में सच को 
ताबानी दे मौला !!
फिर मूरत से बाहर आकर 
चारों और बिखर जा  
फिर मंदिर को कोई मीरा 
दीवानी दे मौला !!

Man is bad case....isnt it?

Saturday, December 29, 2012

GARAJ BARAS PYASI DHARTI PAR SUNG BY JAGJIT SINGH ALBUM INSIGHT BY IFTIK...



Man is bad case....isnt it?

Thursday, December 20, 2012

CHANDI FIGHTS AGAINST CRIME


अपने ही समाचार पत्र में छपे 
आज के गांधीवादी 'सुविचार' को पढ़े बगैर ही उठा बैठे 
राष्ट्रीय सम्पादक जी अपनी दोधारी कलम और तलवार
कल्पनाशील कलप को पेश करते चले गए कल्पेश जी समझ के पलटवार  
अपनी ही आधुनिकता की आग में जलते गए याग्निक जी इस गुरूवार 
पद, सिमित ज्ञान और उत्तेजना के आवेश में इतना तक भूल गए ये भास्करी सरकार  
की चंडिका माताओं और बहनों को किसी से भी तलवार मांगने की कतई जरुरत नहीं 
वे आदि-शक्ति देवी हैं और हैं वें भी सृजनहार 
उन्हें भी बनाया गया है मानव जाति का पालनहार 
हर पल शिव-शक्ति का है उनमे समावेश प्रयोजन अनुसार  
जरुरत है अगर ... तो बस इतनी ही की 
खुद को जगा लें वें आत्मज्ञान और आत्मविश्वास के साथ
चाहे फिर बदलना पड़ें उन्हें कितने ही भेष
हौसले के साथ उठाये गए उनके हर कदम में साथ होंगे श्री गणेश 
कानून और सजा के डर से सुधर सकता अगर ये सामजिक गणतंत्र 
तो ना जाने कब से हो गया होता हर गण दरवेश 
बाँध लो तेजस्वी जुड़े में ये सांवल-सांवल केश 
तुम्हारी ध्यानस्थ नज़रों के ओज से छुप नहीं सकता कोई भेद 
मादा जाति को नहीं ये किसी आदम का उपदेश 
पढ़ सको तो पढ़ लो की ये तो है बस एक मूल सन्देश       
ठीक उसी तरह जैसे कह गए हमसे प्रेमवश दास कबीर की:

ज्यूँ तिल माहि तेल है
ज्यूँ चकमक मा आग 
तेरा साईं तुझमें बसा
जाग सके तो जाग 
    
जय जय माँ दुर्गेश नंदिनी 
जय जय माँ दुर्गेश
जय जय माँ दुर्गा  

Monday, December 17, 2012

आम आदमी को आम बच्चो .........??

जे आज को दैनिक भास्करी सुविचार :

"अच्छा मनुष्य वही है, जो क्रोध और उत्तेजना के क्षणों में भी वाणी पर संयम रखता है।"
                                                                                                                      -शेख सादी

जे उ को मालवी प्रश्न, 
जा की फकत भाषा ही मालवी आहे,
सत्य तो पुरो हिन्दुस्तानी असो

"कहत है शेख सादी 
की वाणी पर संयम जे राखे ते मनुष्य है अच्छो 
जानत नाही शेख सादी पियारो 
के आज के बहुतक हिन्दोस्तानीयो को
छल-कपट से भरा गयो है कच्छो
आम आदमी के पासे ते बस अपनी आवाज उठानो को ही 
अधिकार रह गयो है सच्चो 
बाकी सवरे हक्कों की जो ये बातें करत हैं 
संतत्व, राजनितिक, संवैधानिक, प्रशासनिक, पत्रकारिता जगत के अधिनायक लोकां 
लोकजन ते बस सुनत है इन्हों, 
होई-होई के हक्को-बक्को !!
जानत है हमरी गौमाता रामदुलारी भी 
की ये सबरे हक तो बस रही गवे हैं किताबी 
खाई-खाई ने शोषण को मीठो धक्को 
साँची कहूँ ते दीमक भी इन्हाणु चाटन से डरत है 
के कहीं उन लोगां को भी चट ना कर जावे जे कागजी धब्बो 
ताम ही बताओ अब सरकार 
की चीखे-चिल्लाये नहीं,
उकसे-उकसाए नहीं,
क्रोधित-उत्तेजित होवे नहीं ....
तो करे तो करे का आम आदमी को आम बच्चो .........??
हमरी हमज का इलाज कराइ दीजो इ बार पक्को
सने है के थारे द्वारे दवा मिळत है सस्तो 
कहत है जे दीवानों इक वारसी
सुन भाई साधो
के थारे तो नामा में ही साधुता बसे है 
सत्य की ई झलक म्हारे लागत है इ बारी सच्चो "


Man is bad case....isnt it?

Tuesday, December 11, 2012

Series of "Abysmal Responses to Superficial messages."



Abysmal Responses to Superficial but nevertheless most Popular Messages of Cellular World : its like an Oceanic Depth twitting facebookishly to a single cellular fish in limited 160 characters    

Few examples:

ON MARRIAGE:

Message; When a person is in trouble, all family members , friends, stand by his side
.
.
.
the best proof is in your "Marriage Album"

Superficially, this appears to be a dismal joke but abysmally its a sick sense of humor.
How..??
Well, Observe this oasis response:

"STOP blaming marriage or tagging your spouse to be the root cause of your troublesome life.

Forget not, that YOU yourself chose to marry in the first place.

Remember forever, that it was YOU who chose your spouse.

Nobody forced, hypnotized, mesmerized, toxified, financially strangled, sexually provoked or socially motivated YOU to do so.

Even if YOU didn't chose your spouse and went along your family choice to do so, YOU are duly responsible for agreeing to the agreement of nuptial marriage.
Nobody...yes...Nobody but YOUR own ambitious mind which is so full of expectations from others, as if they are his YOUR mind's slave just as YOU are, took that decision. 

Now, 
YOU should face the consequences of that decision YOU took.

Be a troubleshooter.

FoxyMind troubleshooting antivirus is meditatively available by just paying @due attention to YOUR own inner voice of conscience. 

*conditions apply-
*NO FAKE BEHAVIOR APPLICABLE  

Face it lovingly and courageously by considering it as a lifetime challenge offered by Mother Nature to make YOU a better person, if YOU are unhappy.

Feel gratitude towards the Almighty, if YOU are happily living a happy married life."  


Man is bad case....isnt it?

Friday, December 7, 2012

हद-अनहद


साधु आरम्भ है और संत अंत ..!!??
ये क्या गजब कहत हो तुम पंडित जी ..!!??

की हमरे मौला तो कहत हैं हमसे 
की: 
जो शुरूआत का ही खुद में कर ले अंत वो है संत ...

उलझ गयी है अब आपके ख्यालों से हमारी इ कैसेट अब पंडित जी  
किरपा करी के सुलझाइ दो अब आप ही हमरा पंथ जी ...

अंत-अनंत की बात करत हैं हमरे कबीर दास जी भी  
कहत हैं वो की: 

"हद-हद जाए हर कोई
अनहद जाए ना कोई 
हद-अनहद के बीच में 
रहा कबीरा सोई"

और ये भी की :

"साधु कहावत कठिन है
 लम्बा पेड़ खुजूर 
चढ़े तो चाखे प्रेम रस 
गिरे तो चकनाचूर"

परमात्मा की धारा 
परमात्मा ही तो जानत है ना पंडित जी ..??

या फिर आप भी हम दुराचारी भक्तों की तरह 
पढ़त-पढ़त करन लगे हो परमात्माइ नीयतों की स्वयंभू पढंत जी ..??

हम ना साधू, ना हम संत
ना ही हमका आवत है भिन्न-भिन्न प्रकार से करना ओ की रटंत जी ..??

हमरा पागल मनवा भला क्या जाने 
की कैसे होत है परित-विपरीत की चोमुखी गीनंत जी ..??

किरपा करो विजयी_शंकर में से मे_हता कर महाराज
करबद्ध हो याचनापूर्ण अर्चना करत है ये त्रुटिपूर्ण दिनंत जी ..??

सुन लो महाराज 
सुन लो हम गुलाम वारसियों की ये सद्भावनापूर्ण की गई विनंत जी ..!!

।। जय जय सदचिदानंदमयी माँ अनंत जी ।।

Man is bad case....isnt it?

Thursday, November 29, 2012

EXPOSE the MEDIA CAMPAIGN

ON PRAKASH PARV:

To & For,

My dear KalpeshYsachin,

Mr. Kalpesh Yagnik is that national editor of DAINIK BHASKAR newspaper group who got so irritated/defused/confused/sick with my continuous and candid feedback on his articles published in Dainik Bhaskar that he has blocked my e-mails to reach him through kalpeshy@hotmail.com. He has gone out of his mind, i believe, because he didn't expect a good for nothing mere reader will critically analyse his articles and thereby his limited vision. It seems that these hierarchy authorities just expect and accept praising mails or feedback. Or else as a humble human being he must have at least responded to one of my observation. 
Right...??

May be high-handed, so called successful people suffer with this egoistic attitude to not to respond even once to COMMON READERS like me. Probably, they trust that we readers have no right to send critical analysis or feedback to their kind of superstar personalities. They forget that it is because of our readership and liking that they reached the status that they enjoy so thanklessly today. They easily forget that they too were just a common man like us some time ago.

These so called reporters of print or electronic media run a lot of 'sting operations' to earn their good guy position or status in the society but then my simple query is why can't they themselves face the same inquiry against their real intentions behind the scene.

Why not we readers start an EXPOSE the MEDIA CAMPAIGN against a media which considers itself much more powerful than anyone else on this universe including GOD...!!

How..??

By sending my those messages which i have blogged on MAN IS BAD KASE - manisbadkase.blogspot.com, published on my facebook account wall, shared on my twitter account by the name of manish badkas to the following e-mail addresses

  1. kalpeshy@hotmail.com
  2. jpchowksey@yahoo.in
  3. raghu@mp.bhaskarnet.com
  4. dr.yatish@yahoo.com
  5. dr.vaidik@gmail.com
  6. editor@mp.bhaskarnet.com 
Of course, you do that only if you choose to do that after listening to the voice of your conscience. Of course you do that once you really believe that my messages and their intention is not to trouble someone or to insult someone but are appropriate enough to humanly point out at the truth that exists as a light within all of us.


Can you help me..??
pleeeeez do help me....i need it !!  

Do whatever your inner voice of conscience guides you to do. After all, its your choice and you are free to choose what you want/unwanted, like/dislike, love/hate, etc. etc. etc.....isn't it...???

but,

your wishes, your desires, your actions, your reactions, your responses, your feedback, your comments, etc. etc. etc. need to come from your positive energy of COMPASSIONATE LOVE & not from negative vibe of DISPASSIONATE LUST.

LIGHTEN THEM PURELY & GODLY ON THIS PRAKASH PARV.

God bless you :-)  

Tuesday, November 27, 2012

Read this article only if you have COMMON SENSE


LIFE of PI is a must must must watch film in its superb 3D version.
It can certainly help us in observing at least a glimpse of THE UNKNOWN NETWORK of THE UNTHINKABLE, THE UNKNOWABLE OMNIPOTENT, OMNIPRESENT, OMNISCIENT GOD
OR
is it GODLINESS...???
yes...
our knowledge, our IQ, our intellect, our success, our stardom, our fame, our bachelor or master's degrees, our richness etc etc etc is not gonna help us enjoy the LIFE of PI
but...but...but...,
our heartfelt innocence, our soulful love, our common sense and our wisdom and that too if GOD is willing, might help us...
Try it.

That brings me to the topic of COMMON SENSE too...

Considering the army of in numerous non-sensible or insensible people that we come across in our dates err...day to day lives and very well knowing the huge presence of an irresponsible society full of intellectually selfish cowards who purposefully keep quiet by intelligently terming their mum as some kind of 'spiritual state of silence' to gain some status from this very society are, in fact, the most selfish individuals alive on planet Earth.

I say so because i trust that 'silence of a well balanced, highly responsible because of his current successful status in this society, good/god man is much much more unbalancing in nature than words of a imbalanced, irresponsibly talkative MAN IS BAD KASE like me.'

Right naa...??

Common sense is not at all a gift, my dear buddy...

Yup...it is a grave punishment, because one with common sense has to deal with everyone, every moment of his life with people who do not have it.

Try to make people with less or miniscule percentage of common sense in their daily attitude or daily habits and you will know why i call it a 'grave punishment'. Trust me, first they will ignore you & your words of wisdom. Secondly, they will try to ridicule you along with the big lobby that they have in their support as partners of dime. Thirdly, they will start fighting with you if you still do not stop or keep quiet. Lastly, the truth wins - satya mev jayte as indian currency legitimately mentions below 'Ashok Stambh' which Amir Khan's Tv show recently rejuvenated in our hearts.

...but...but...but,

This article is not at all about you, me, people, their IQ percentage or grave punishment that speakers has to suffer with. Its about meditatively balancing the HORMONAL IMBALANCE of MOTHER NATURE by consciously living in NOW & HERE with CHOICE-LESS AWARENESS.

Oshoites might get the point i am insensibly trying to make but to the rest i can just request to understand the message that i explicitly try to convey through my enormous text messages, e-mails, blogs, facebook walls.

I can just hope that they do because as someone rightly said, " KNOWLEDGE CAN BE GIVEN BUT WISDOM CANNOT BE GIVEN."
I say ditto is with COMMON SENSE too.

Ooooops...!!   
Man is bad case....isnt it?


Monday, November 26, 2012

परदे में रहने दो...

परदे में रहने दो
पर्दा ना उठाओ
पर्दा जो खुल गया तो 

आप वो समझें जो आपको सुकून दे जाए
हम वो कहते/करते हैं जो हमको रास आये 
झगडा फिर किस बात का है 'बेदार'
यादें महबूब की चाहे हमें हंसाये या फिर रुलाये ..??

आंसू आनंद के हों या हो फिर गम के 
वो आशिक ही कैसा 
जो रोये दूसरों को परवरदिगार, गुनाहगार या कसूरवार समझ के ..??

तुम चाहे जितने बन सकें लगा सकते हो यारों 
मुझ नाचीज पर अपनी अक्ल लगाकर तरह-तरह के तमगे 
कोई फर्क नहीं पड़ता चाहे फिर गोरे हों या काले हों वे तमगे ...

वैसे भी सिर्फ मेरे बोल, 
मेरी वाणी या मेरे अंदाज को सबकुछ मानकर पेश किये गए हैं वे तमगे ...

जान लो मुझसे ही तुम ये आज 
की 
सुकून मेरे अल्फाजों में नहीं 
एक नश्तर सा एहसास है 
चुभती है मेरी वाणी सदा से लोगों को यूँ ही 
वैसे एक दिलवाले कान की हमको भी 
सदा से ही रही तलाश है ...

जाने कब के चुप हो जाते हम बेदर्दी कसम से 
शुक्राने आपके !!
के वो बर्दाश्त-इ-हुनर आप सब सबुरी वाले लोगों के पास है ...

कल्पेश याग्निक जी की परिभाषा के अनुसार तो 
खुदाया !!
खुदा भी गलत, खुदाई भी ग़मगीन 
और खुदाया, खुदी तो खैर है ही नमकीन 
परदे में जो रख छोड़ा है
 खुदा ने सबकुछ !!??!!
न कभी कहा खुदा ने खुलकर की "वो है"
और न ही कभी वो इतराया 'दीनिक भास्कर" की तरह ये कहकर की 'हमने किया'   

ग़ालिब तुझे हम वाली ही समझते 
गर ना तू बदखार होता 
की किस बेखुदी में ना खोलकर भी 
खोल गए तुम ये राज़ की;
कह सके कौन
 की ये जल्वागिरी किसकी है
   पर्दा रख छोड़ा है वो उसने 
     उठाये ना बने ...