Saturday, September 24, 2011

दीन-ओ-ईमान के मसले-झगडे...



मेरा ईमान
मुझे बुतपरस्ती की इजाज़त नहीं देता
और तेरा दीन
हर कंकर में शिव-शंकर है कहता

अब

छोडो भी
ये दीन-ओ-ईमान के मसले-झगडे
क्या
दिल-ओ-ज़मीर हमारा
एक स्वर में
इश्कां रहने को नहीं कहता..??

शायद
मुझे ये जानने की जरुरत
के
हर सूरत में है उसी की मूरत
शायद
तुझे ये समझने की जरुरत
के
हर सूरत नहीं उसी की मूरत

फर्क

इतना महीन
के
छूट जाए जो नज़र से
तो
इंसान, इंसान नहीं रहता..

तुम
याद दिलाओ मुझे अन-हल-हक की यलगार
मैं
दिखाऊं तुम्हे दुर्योधन का अहंकार
तुम
दिखाओ मुझे मंसूर का दमकता हुआ चेहरा
मैं
सुनाऊं तुम्हे रावण की अफ़सोस भरी चीत्कार

पर

ये सब कहने-सुनने, देखने-समझने से भी क्या होगा
के
इंसान मौकापरस्ती से सदैव परास्त है रहता...

सत्य
कहा-सुना या फिर देखा-समझा जा सकता अगर
तो
खुदाया शिव-शंकरो से लबरेज़ ना होता ये नगर
प्रेम
गर दिल में अकूत हो मगर
तो
हर सूं और हर शय में वही आता है नज़र

ईमान
या
धरम नहीं
मुझसे मेरा इश्क ये कहता...

उज्जैन १ - २ सितम्बर २०११ को सांप्रदायिक दंगो की आग में जला...
इस बार मुद्दा मस्जिद से लगी हुई दूकान में गणेश प्रतिमा को स्थापित करना बना

1 comment:

  1. kamaal hai, itni khoobsurat rachna ke liye koi comment nahi! Itni achchi post ke liye shukriya

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