Wednesday, August 24, 2011

छपास की भूख




देख रहें है आप जनाब


ये छपास की ज़बरदस्त भूख

जो छाई हुई है मुझ पर

और

मेरे मुल्क के बाशिंदों पर !!

अप्रमाणित भ्रष्टाचारी

प्रमाणित भ्रष्टाचारी

के विरोध में उठ खड़ा हुआ है !!

अँधेरा खुद जैसे

मोमबत्ती जलाने को उत्सुक हुआ है !!

हर कोई

कैंडल मार्च में शामिल होने को

जैसे मरा जा रहा है !!

फोटो खिंचवाने को

जैसे वो

सर के बल दौड़ा जा रहा है !!

डर है उसे

की

इस मुहीम में

कहीं पीछे ना छूट जाए वो !!

positive

इस लहर में

कहीं negative सा

नज़र ना आ जाए वो !!

छिप-छिप कर खाने वाला

देखिये तो जनाब

किस शान से

खुलेआम

अनशन ओढ़ रहा है !!

और

दुराचारी कहला रहा है वो

जो शर्मसार हो

इस आन्दोलन से

अपना मुख मोड़ रहा है !!

चलो जी...

वजह कुछ भी हो

भ्रष्ट आज अपना ही

पुतला जलाने को

मजबूर तो हुआ !!

सत्य का

भले ही ना सही

अन्ना का तो वो

मशकूर हुआ !!

आएगा जी...

जरुर आएगा

फिर

वो दिन भी कभी

झाँकेगा झूठ

जब अपनी ही आँख में !!

जलेगा दीप

जब अपनी ही आँच से !!

होगा जी...

जरुर होगा

अपनी सीरत पर भी

शर्मिंदा वो कभी !!

तब तक

ये खेल-तमाशा ही सही !!

क्रिकेट में हार

तो

सड़क पर जीत ही सही !!

tv पर सनसनी

तो

अखबार में खलबली ही सही !!

जारी रहे...

गर ये जरुरी बुराई

यूँ ही आदतन

तो बुराई भी क्या है ??

चलता रहे...

ये सफ़र

यूँ ही दफ्फातन

तो बुराई ही क्या है ??

रहता नहीं

क्या हर शख्स

साधुता से पहले हरजाई है ??

जागने से पहले

हर पीढ़ी

थोड़ी-बहुत अलसाई है..!!

बस...

इसी श्रद्धा से

जिए जाता है 'मनीष'

सबुरी में

की.,

कभी तो दिखाई पड़ेगा

खुदा

हर इन्सान की

परछाई में...

आमीन

Friday, August 19, 2011

idealistic slogans about LOVE - LIFE - MORALS et al...

If you can dream big to de-corrupt an entire nation by holding fast-unto-death and by rallying with the mob to fight against corruption, then surely i can atleast give a fair trial to convert myself into an honest citizen...can't i?

Just as you are busy in fighting against the faceless corruption, i am busy in overcoming the shameless corrupt.

HaPPy peOple dO nOt trY tO maKe Others unHaPPy ; tHEy juSt shaRe tHEir beinG.

Life is to Live Lovingly.
..but some THINKERS are always on a MISSION ; searching for a REASON or PURPOSE behind life. Their mission turns their life into HELL.

When inside is free, the outside stops to be a limitation ; IT is then realise as wholesome part of the whole.

It is always our choice whether we want to live in Heaven or Hell....ALWAYS
Oh Yes !!
i said ALWAYS.

There ain't any RiGht or WrOng answers ; there are just answers.Those which fit our beliefs are considered RiGht and those which do not are termed WrOng.

SWEET RELATIONSHIPS happen when we become our own pillow ; when tired we relax on them, when sad we shed tears on them, when angry we punch them and when happy we hug them.

Love is all about brossing the pain barrier, leaving our comfort zone, living each moment dangerously and yet enjoying the life to the fullest.

it is always better to live life with love n ZERO EXPECTATIONS....it makes us self-sufficient and free from the OtHeR.
Then,
when our wishes get fulfilled ; we do not get filled with ego but with gratitude.

Loyalties and Trusts are never towards people.
They are always towards
F.U.C.K
that is
Freedom, Understanding, Care & Knowledge
for all you SEXY GUYS n GALS ;-)

This OVERWHELMING URGE to be LOVED n LIKED by ALL n SUNDRY & hence LOVING n LIKING others for a GAIN is what POLITICS n POLITICIANS all about.
Beware Jaani...

Flowering is not a successful DOING for a flower ; it is just a state of the plant ecstasy as gifted generously by mother nature - ditto with wilting too.
Man but, powered by his ego thinks that he is the DOER when in fact it is a happening born out of life's compassion for life.

It is very easy to read, write or forward idealistic slogans about LOVE - LIFE - MORALS et al...
The real challenge lies in implementing them in our day-to-day lives.

The river is  not there to impose its superiority over the rock...
The rock is not there to be a stumbling block for the river...
They are there in perfect harmony....creating music
but...,
LIFE IS AS WE SEE IT.

WHAT IS SO WRONG  WITH STAYING IN CONSTANT TOUCH WITH THE GROUND BELOW OUR FEET?
WHAT IS THIS HUMAN OBSESSION ABOUT ACHIEVING STELLAR HEIGHTS?
IS THAT PROGRESS, GROWTH, EGO TRIP OR WHAT.....?????

To guard your image and that too in the eyes of the others is like guarding a goat from a butcher and that too in a slaughter-house.

ONly LOOSERS think in terms of non-existing competetion or rivalry between DAY & NIGHT ; LOVERS enjoy the two metaphysical forms of TIME...

Thursday, August 18, 2011

REALITY CHECK

A pessimist thinks
THE GLASS IS HALF-EMPTY

An optimist thinks
THE GLASS IS HALF-FILLED

A realist
JUST DRINKS...
:-)  ;-)  :-)

Thursday, August 11, 2011

Its TIME...

This blogpost is in response to ;

निर्णायक प्रतिरोध का समय


Source: चेतन भगत
Last Updated 00:28(11/08/11
 
हम सभी का सामना किसी ऐसे ‘अंकल’ से हुआ होगा, जो समय-समय पर हमें याद दिलाते रहते हैं कि इस देश का भगवान ही मालिक है। उनकी हर बात का लब्बोलुआब यह रहता है कि भारत एक भ्रष्ट और नाकारा देश है, जहां जिंदगी गुजारना मुश्किल है। वे हमें बताते हैं कि आरटीओ से लेकर राशन की दुकान और नगर पालिका तक हर सरकारी अधिकारी घूस खाता है। वे हमें यह भी बताते हैं कि कोई भी सरकारी महकमा ठीक से अपना काम नहीं करता।


गड्ढों से भरी सड़कें, खस्ताहाल सरकारी स्कूल, बीमार अस्पताल, ये सभी ‘अंकल’ की थ्योरी को सही भी साबित करते हैं। उनसे बहस करना कठिन है, क्योंकि वे गलत नहीं हैं। हमारे यहां सत्ता की तूती बोलती है, न्याय की आवाज दबकर रह जाती है, समानता का कोई नाम नहीं है। चाहे यह सब सुनने में कितना ही दुखद क्यों न लगे, लेकिन सच्चाई यही है।

लिहाजा, ‘अंकल’ अपना राग अलापते रहते हैं कि इस देश का कुछ नहीं हो सकता। ऐसा लगता है जैसे उन्हें इस बारे में कोई भी शक नहीं है। निराश ‘अंकल’ हमारी हर चीज पर संदेह करते हैं और बुराइयों को उभारकर सामने रखते हैं। यदि कोई व्यक्ति देश को सुधारने का बीड़ा उठाता भी है तो वे यह घोषणा कर देते हैं कि उसकी हरकतों के पीछे कोई ‘गुप्त एजेंडा’ होगा।

यहीं पर ‘अंकल’ गलती कर जाते हैं। एक गंभीर गलती। क्योंकि समस्याएं गिनाना एक बात है और समस्याओं को सुलझाने के लिए अपना जीवन दांव पर लगा देना दूसरी। साफ-सुथरे समाज की चाह रखना एक बात है और समाज को सुधारने का प्रयास करने वालों की नीयत पर शक करना दूसरी। सिनिसिज्म या निराशावाद कोई तर्क नहीं है, वह एक रवैया है। क्योंकि तथ्य यह है कि देश में आज भी अच्छे लोग हैं। सरकारी दफ्तरों में भी कुछ अच्छे लोग हैं। समस्या यही है कि उनकी आवाज को दबा दिया जाता है।

मुझे पूरा भरोसा है कि यह कॉलम पढ़ने वालों में से अधिकांश लोग ‘अंकल’ की तरह निराशावादी नहीं हैं। क्योंकि ‘अंकल’ तो अखबार को रद्दी के ढेर में फेंक देंगे और कहेंगे कि इस तरह के फिजूल कॉलम से कुछ भी नहीं हो सकता।

मैं आपको कोई कारण नहीं गिनाना चाहता कि हमें अन्ना का समर्थन क्यों करना चाहिए। यह अन्ना की गरिमा के साथ अन्याय होगा कि उन्हें अपने लिए समर्थन की याचना करनी पड़े, जबकि वे एक भ्रष्ट सरकार के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे हैं।

मैं आपका ज्यादा समय लिए बिना कुछ तथ्यों को दोहराना चाहूंगा। अन्ना ने अप्रैल में अनशन किया, जो जल्द ही एक राष्ट्रव्यापी आंदोलन बन गया। चिंतित सरकार ने एक प्रभावी लोकपाल बिल बनाने पर सहमति जताई, आंदोलनकारियों के साथ हाथ मिलाया और सैद्धांतिक रूप से अन्ना के संस्करण पर राजी हो गई। तबसे लगातार सरकार अन्ना की टीम का अपमान कर रही है। उसने उनके मसौदे को एक तरफ पटक दिया और अपना स्वयं का एक मसौदा बनाया, जो कि लगभग निर्थक है।

सरकार संसद में जो मसौदा प्रस्तुत कर रही है, वह भ्रष्टाचार पर अंकुश नहीं लगाएगा। महज 0.5 फीसदी सरकारी अधिकारी इसके दायरे में आते हैं। हमारी भ्रष्ट राशन की दुकानें, आरटीओ, पासपोर्ट दफ्तर, पंचायतें और नगर पालिकाएं इसके दायरे में नहीं आएंगी। प्रधानमंत्री तो खैर लोकपाल से परे हैं ही। क्या आपने कभी किसी लोकतंत्र में ऐसे भ्रष्टाचाररोधी कानून के बारे में सुना है, जो केवल कुछ खास लोगों पर ही लागू होता हो?

सरकार हमारी आंखों में धूल झोंक रही है। वह समझती है कि देश के लोग निरक्षर हैं और वे दोनों मसौदों का अंतर नहीं समझेंगे। बहरहाल, यह कॉलम पढ़ने वाले सभी लोग साक्षर व प्रबुद्ध हैं और वे सही-गलत का भेद समझते हैं। वे जानते हैं कि उन्होंने अपना पूरा जीवन भ्रष्टाचार से संघर्ष करते हुए बिताया है, लेकिन वे यह नहीं चाहते कि उनके बच्चे भी इसी तरह का जीवन बिताएं।

हो सकता है एक लचर लोकपाल से हमें आज कोई नुकसान न हो, लेकिन कल हमें इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा, जब हमारे बच्चों को कॉलेज में सीट नहीं मिलेगी, जब अस्पतालों में हमारा ठीक से इलाज नहीं किया जाएगा और जब हमारा कोई जरूरी काम सरकारी फाइलों में अटककर रह जाएगा।

हम एक गरीब देश में रहते हैं। गरीब इसलिए नहीं कि हममें अमीर बनने की क्षमता नहीं है, बल्कि इसलिए कि हमारे नेताओं ने हमें निराश किया है। हमने उनके हाथों में जरूरत से ज्यादा सत्ता सौंप दी, इसलिए उन्होंने हमारे वोट को चोरी करने का लाइसेंस समझ लिया। उन्हें उत्तरदायित्व से घृणा है, लेकिन उत्तरदायित्व की भावना के बिना हमारा विकास अवरुद्ध हो जाएगा।

इसलिए अन्ना के बारे में हमारी व्यक्तिगत राय चाहे जो हो, हमें उनका नहीं, उनके लक्ष्य और उनके ध्येय का समर्थन करना चाहिए। सरकार चंद आंदोलनकारियों को कुचल सकती है, लेकिन वह पूरे देश को नहीं कुचल सकती। शांतिपूर्ण, ठोस और निर्णायक प्रतिरोध हर भारतीय का अधिकार है। सोमवार से हम सभी का एक ही लक्ष्य होगा: देश के भविष्य की रक्षा।

मैं सरकार से भी कुछ कहना चाहूंगा। आपको क्या लगता है, आप एक लचर कानून बनाकर हमारे गले में ठूंस देंगे? क्या अन्ना को कुचल देने से भ्रष्टाचार से निजात पाने की हमारी जरूरत भी खत्म हो जाएगी? देश में भ्रष्टाचार विरोधी भावनाएं अन्ना ने नहीं उपजाई हैं और अन्ना को कुचल देने से जनभावनाएं समाप्त नहीं हो जाएंगी। अहंकार और दर्प का परिचय देकर आप देश में अराजकता का खतरा उत्पन्न कर रहे हैं और अराजकता से निपटना टेढ़ी खीर होता है। जन लोकपाल कानून को लागू कीजिए, अभी, इसी वक्त। प्लीज।

अंत में मैं जनता से कहना चाहूंगा कि यह ‘अंकल’ को गलत साबित कर देने का समय है। हकीकत ‘अंकल’ के निराशावाद से बड़ी है। गीता में कहा गया है कि जब पाप का घड़ा भर जाता है तो किसी न किसी को धर्म की रक्षा के लिए सामने आना पड़ता है। अब यह हमें तय करना है कि पाप का घड़ा भर चुका है या नहीं। और यह भी हमें ही तय करना है कि सड़कों पर उतरने का समय आ गया है या नहीं।


Ya...its Time

 Dear Chetan,


The so called "UNCLE" would feel ecstatic if he is been proved wrong on the state of affairs as it is among so called "INDIANS" when it comes to corruption.

You are very right when you write that - " A few activists standing tall against corruption can be stomped by the government but the government cannnot crush the whole of countrymen if they decide to stand agains rampant corruption."

I go by the same logic to say that - " The system can certainly nab a few corrupt individuals who indulge themselves in corrupt practices but the system cannot run down itself as a whole if majority of the components have perversely decided to stay corrupt."

Peep into the day-to-day lives of these staunch activists ready to lay their lives for a cause and you will know that their determination to do so comes from their strong dedication to lead an austere and corruption-free life themselves.

As Jesus would have said - " Let him, who indulges not in corrupt practices in his private and personal life, be the first one to throw stone on them who are indeed corrupt."

Just as you do not make an army of cowards, you do not build a movement against corrupt with the support of the corrupt - both are toothless.

Hope, the ever-hasty for result and ever-hungry for success young brigade of yours, of which you seem to be the chair-person would understand the values of building a house brick by brick.

Its Time to drench the brick in water to make it strong enough to bear the rough seasons or else it would be no better than the house of cards falling at the slightest hint, provocation or pretention of danger - fleeing and crying a la Baba Ramdev and his cohorts.

God bless the movement...

Yours truly,
manish badkas

Tuesday, August 9, 2011

कहते हैं की;

कहते हैं की;

" सत्य परेशान तो हो सकता है
पर पराजित कभी नहीं होता "

सवाल ये मगर

की

क्या वो सत्य पूर्ण-सत्य है
जो परेशान हो जाए ek lamhe को भी..??

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वो
खून बहाए
वो
दूध पिलाए
वो
पौरुष जगाये
कुदरतन...
वो
माँ भी
वो
पोषक भी
वो पत्नी-प्रेमिका भी
फितरतन...
और
तू..??

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भेजा उसे था ek फूल
वो गुलशन हो गया
दिया उसे था ek बोसा
वो चमन हो गया
जादू है ये
उसकी मस्त-निगाही का
क्या था मैं
और
क्या हो गया..??

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कश लगा
हर ek सांस पे
पी ले
प्राणों से प्राणों की हला
इश्कां हो  जा
दिल से
मिटा नकली
अक्ली affairs का सिलसिला
माशूका बना ले
मौत को
flirt बन तगड़ा
बीमे-शीमे
ke चक्कर छोड़
premium  का
लफड़ा है बड़ा
तू  मरेगा
दूसरा भरेगा
फिर claim  का
झगड़ा होगा खड़ा
तू मरे
और दूसरा मौज उड़ाए
ये कैसा दुखड़ा है पड़ा
बदले में
फोटू पे तेरी
रोज़ माला भी पहनाये तो
जैसे लगाता हो कोई
टाट में मखमल का थिगडा सड़ा
तू तो मर गया
और
उसका तो
न बाल बिगड़ा
न नाख़ून तक ज़मीन में गड़ा
खाली-फ़ोकट
मर-मर ke जीया तू बरसों
इससे तो
जी-जी ke मर जाता तू परसों
कमसकम
सेंक सकता न कोई
तेरी चिता पे
 यूँ दाल-बाटी
या
कबाब वाला टिकड़ा बड़ा
कहे 'मनीष'
शब्दों को चबा-चबा
सुन सके तो सुन ले
की ये कलाम नहीं सोने में जड़ा
लिखता है
अक्षरों को दबा-दबा
पढ़ सके तो पढ़ ले
की सच होता नहीं
किसी का भी सगा
हाँ मगर...
सत्य है अद्वैत

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दुःख है क्या
और
सुख है क्या
पता नहीं...
रंग है क्या
और
नूर है क्या
पता नहीं...
ज़िन्दगी है क्या
और
मौत है क्या
पता नहीं...
सपना है क्या
और
हकीकत है क्या
पता नहीं...
सच है क्या
और
झूठ है क्या
पता नहीं...
अपना है कौन
और
पराया है कौन
पता नहीं...
बस..,
इतना ही जानू हूँ
की
मुझे मेरा कुछ पता नहीं
फिर हूँ भी
की
नहीं भी हूँ
पता नहीं...

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तराशने चले
जो हम खुदको
दोस्तों की
अंदाज़-ए-नज़र से..,

जाना हमने
की
हज़ार जिंदगियां
भी नाकाफी हैं
'मनीष' तेरी मरम्मत को..!!

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दूसरों पर
दोष मढना
उतना ही आसान है
जितना मुश्किल है
खुद को
खुदा कहना . . . . . . . . !!

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kahun kise
और
sunta कौन है
लिखूं किसे
और
पढता कौन है
khoye हैं जो
kal की kal-kal में
aaj और ab से
unka रिश्ता कब है



Thursday, August 4, 2011

मैं और तुम

You & I

तुम हो
और
मेरे आस-पास हो
ये एहसास ही काफी है
तुम हो
और
मेरे अन्दर-बाहर हो
ये अंदाज़ ही काफी है
फिर तुमसे मुलाक़ात भी हो जाए
तो क्या बात है...
हो सकूँ गर में तुमसे रु-ब-रु
तो काएनात है...
महसूस कर सकूँ
गर दो जिस्मों को एक जान होते हुए
तो क्या बात है...
बाद मोहब्बत भरी मुलाक़ात के
गर रह जाए कोई तमन्ना बाकी
तो वाहियात है...
जान लो फिर की अभी बस
समझी-समझाई सी एक बात है
उतरी नहीं जो दिल-ओ-जान में
वो अधूरी बात है...
नाकाफी है
इश्क का एहसास अभी नाकाफी है...
कुछ है जो है अब भी तेरे-मेरे दरमियान
ये 'तेरे-मेरे' की पहचान अभी बाकी है...
पड़ा हुआ है अक्ल पे अभी झीना सा एक पर्दा
गिरना जिस परदे का मुद्दतों से बाकी है...
सोच-सोच कर हुआ जो राई से पहाड़
उस सोच की गिरफ्त अभी बाकी है...
तिल का ताड़ बनाये जो मन
तेरा उस मन का इश होना अभी बाकी है...
वो अभिलाषाओं की अभिलाषा अभी बाकी है...
तुम मैं और मैं तुम होना अभी बाकी है........!!