Friday, November 12, 2010

लुत्फ़


इकतरफा मोहब्बत में वो मजा नहीं
जो लुत्फ़ इकरार-ए-यार में है
इसी लिए..
बिखर गया वो बनकर क़ाएनात..!!
 जानता था वो बखूबी..
की इस तरह तो बिखर जाएगी मोहब्बत भी
मजा जो मगर बिछड़ कर मिलने में है
वो कायम पहलु-ए-यार में नहीं..!!

मेरे रब ने करम ये अनोखा रखा 
ख़ुशी और ग़म का संगम ये अनोखा रखा..

टूट जाता है हर ख्वाब पूरा होकर 
इसलिए हर ख्वाब मेरा उसने अधुरा रखा..

ले सकूँ लुत्फ़ मैं इस अधूरेपन का
इसलिए उसने खुद को खुदाई में गुमशुदा रखा..

हो सके एहसास मुझे उस पार का
इसलिए इस पार उसने ये किस्सा रखा..

देख सकूँ मैं उसको इसमें भी और उसमें भी
इसलिए उसने मुझको खुद सा रखा..

कर सकूँ महसूस मैं जज़्बा-ए-यकीन
इसलिए खौफ-ओ-दिलेरी का ये मजमा रखा..

अंदाज़े ही ना लगाता रहूँ ताउम्र मैं जशन के
इसलिए हार-जीत का कायम ये सिलसिला रखा..

हो सकूँ फ़ना मैं उसमें अपनी मर्ज़ी से 
इसलिए जीते जी मरने का ये हौसला रखा..

2 comments:

  1. टूट जाता है हर ख्वाब पूरा होकर
    इसलिए हर ख्वाब मेरा उसने अधुरा रखा..
    kuch bhawnaaon ko jite hain hum , kuch kah nahi paate

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  2. आपने बड़े ख़ूबसूरत ख़यालों से सजा कर एक निहायत उम्दा ग़ज़ल लिखी है।

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