Thursday, October 21, 2010
मुलाक़ात :
मिलो तो शिकायत करते हैं वो,
ना मिलो तो गिले रखते हैं वो..
सोचता हूँ अपना लूँ उन्ही की एक अदा,
मिल कर भी तो नहीं मिलते हैं वो..
हाथ मिलते हैं तपाक से जब मिलते हैं वो,
नज़रे मिलती हैं इत्तेफाक से जब मिलते हैं वो..
गले मिलने की रस्म भी बाखुदा निभा देते हैं वो,
दिल मिलाने की करूँ जुर्रत तो या खुदा!! चिल्ला देते हैं वो..
आते ही जाने का एलान कर देते हैं वो,
जाते-जाते फिर आने का वायेदा भी कर जाते हैं वो..
कुछ इधर-उधर की बातें, फिर मेरा हाल पूछते हैं वो,
तेज धडकनों को मेरी मौसमी बुखार कह देते हैं वो..
इश्क को मेरे दोस्ती कहते हैं वो,
दीवानगी से मेरी अनजान रहते हैं वो..
बयां पर मेरे हौले से एक चपत लगा देते हैं वो,
एक आँख दबा कर जाने क्यूँ मुस्कुरा देते हैं वो..
थाम लूँ जो वो चपत वाला हाथ तो शरमा जाते हैं वो,
आँखें फिर तरेर कर इतरा जाते हैं वो..
सीख लो तुम भी ज़माने के तौर-तरीके 'मनीष',
हमदर्दी से भरी ये ताकीद कर जाते हैं वो..
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इश्क को मेरे दोस्ती कहते हैं वो,
ReplyDeleteदीवानगी से मेरी अनजान रहते हैं वो..
waah